फिल्म: इंदु की जवानी
रिलीज़: 2020
डायरेक्टर/ राइटर: अबीर सेनगुप्ता
प्रोड्यूसर: निक्खिल आडवाणी, रयान स्टीफन, दिव्या खोसला कुमार
लीड: आदित्य सील, कियारा आडवाणी, मल्लिका दुआ, मोहम्मद इकबाल खान
ये सचमुच खोज का विषय है की कैसे “इंदु की जवानी” जैसी फिल्मों को रिलीज़ करने की अनुमति दी जाती है। ये फिल्म खुलेआम ‘लव जिहाद’ और पाकिस्तान प्रेम को बढ़ावा देती है। इस फिल्म का सीधा एजेंडा ये है की हिंदू महिलाएं, हिंदू पुरुषों की बजाए पाकिस्तानी पुरुषों के साथ अधिक खुश रहती हैं।
फिल्म का प्लॉट:
कियारा आडवाणी इंदिरा गुप्ता उर्फ इंदु की भूमिका निभाती हैं, जो एक आकर्षक युवती है और आस-पड़ोस में रहने वाले हर लड़के की नज़र उसपर ही है। उसका एक बॉयफ्रेंड है जो सेक्स के लिए उत्सुक है, पर इंदु उसे शादी तक इंतजार करवाना चाहती है।
एक दिन इंदु अपने इस बॉयफ्रेंड को एक दूसरी महिला की साथ रंगे हाथों पकड़ लेती है। ऐसे धोखेबाज बॉयफ्रेंड से छुटकारा मिलने की खुशी मनाने की जगह इंदु इस निष्कर्ष पर पहुँचती हैं की उसके बॉयफ्रेंड ने उसे इसलिए धोखा दिया क्योंकि वो उसकी शारीरिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाई। इंदु अपनी वर्जिनिटी खोने को बेचैन हो जाती है और कई डेटिंग ऐप्स से जुड़ जाती है। ये सब इसलिए ताकि भविष्य में उसका कोई भी बॉयफ्रेंड उसे धोखा न दे।
इसी डेटिंग एप में उसकी मुलाकात समर (आदित्य सील) नमक युवक से होती है जो हैदराबाद में रहता है।
एक रात पाकिस्तानी आतंकवादी पुलिस की गिरफ्त से बाहर शहर में घूम रहा होता है। उसी दिन इंदु और समर मिलने का प्लान बनाते हैं। दोनों इंदु के घर पर मिलते हैं। इस मुलाकात में इंदु को पता चलता है की समर असल में पाकिस्तान के हैदराबाद से है न की हिंदुस्तान के हैदराबाद से। इसके बाद दोनों के बीच इस बात पर तकरार हो जाती है की किसका देश अधिक बुरा है। तभी बाहर घूम रहा आतंकवादी डिलीवरी बॉय बनकर घर के अंदर आ जाता है।
इसके बाद की कहानी में इंदु और समर इस आतंकवादी से जूझते हुए दिखाई देते हैं।
इस लंबे प्लॉट में गौर करने वाली बात यह है की भारत को एक लचर राष्ट्र के रूप में प्रचारित किया जाता है। भारतीय पुरुषों को अश्लील और महिलाओं को भी चरित्र से कमज़ोर दर्शाया गया है।
ऐसा दिखाया गया है की इस संसार में अगर कोई सभ्य पुरुष है तो वो केवल एक पाकिस्तानी (सच्चा मुसलमान) ही है। और पूरे देश के पुरुषों को छोड़ कर कहानी की महिला किरदार इंदु के लिए समर ही सबसे काबिल आदमी है। ये पाकिस्तानी पुरुष इंदु को ‘इंडिया’ कह कर बुलाता है क्योंकि इंदु ने ऐप पर अपना नाम गलत टाइप किया था।
इसका मतलब है कहानी लिखने वाले इंदु को नहीं बल्कि इंडिया को पाकिस्तान के सामने झुकता हुआ दिखा रहे हैं। इंदु समर से माफ़ी मांगती है क्योंकि उसने पाकिस्तान को गलत समझा और ऐसा एक बार नहीं कई बार होता है। इंदु के साथ इतना समय बिताने के बाद भी समर को ये नहीं लगता की उसे अपनी सही पहचान बहुत पहले बता देनी चाहिए थी।
क्या समर कभी इसका विपरीत स्वीकार करेगा? मतलब एक हिंदू युवक हिंदुस्तान के हैदराबाद या कश्मीर से पाकिस्तान जाकर वहां की युवती को अपने प्रेम जाल में फंसाए और इतना ही नहीं उसके घर तक पहुंच जाए तब की जब उसके माता पिता भी घर पर न हो। क्या कभी ऐसा संभव है?
हमें तो नहीं लगता।
फिल्म के नाम से लगता है ये कोई सी-ग्रेड कामुत्का से परिपूर्ण फिल्म होगी, पर इसका प्लॉट दिखाता है की कैसे एक पाकिस्तानी युवक एक हिन्दुस्तानी युवती के साथ मिलकर एक आतंकवादी को मार गिरता है। राइटर-डायरेक्टर अबीर सेनगुप्ता फिर वही भ्रामक करने वाला ‘पाकिस्तान प्रेम’ दिखाने की कोशिश करते हैं। साथ ही वो बढ़ते अंतर धार्मिक अपराधों पर पर्दा डालते नज़र आते हैं। यहां वो सीमा पार से संचालित होने वाली आतंकी गतिविधियों को बड़ी बखूबी नजरंदाज कर देते हैं।
इस फिल्म में क्या समस्याग्रस्त है, उसकी एक सूची:
1. पाकिस्तान और आतंकवाद का कोई रिश्ता नहीं है – लेखक ने बड़ी चतुराई से आतंकवाद और पाकिस्तान को अलग दिखाया है और ये भी बताया है की आतंक का कोई धर्म नहीं होता। ऐसा दिखाया है की आतंकवाद केवल इसलिए पनपता है क्युकी भारत पाकिस्तान आपस में लड़ते रहते हैं। उनके लड़ते रहने में ही आतंकवाद जीवित रहेगा। साथ ही घर में घुसने वाला आतंकी कभी भी खुद को पाकिस्तान से नहीं जोड़ता, इससे ये सिद्ध करने का प्रयास है की पाकिस्तान का आतंकवाद से कोई नाता नहीं है।
फिल्म के मुताबिक आतंकवाद से तभी निपटा जा सकता है जब भारत और पाकिस्तान दोस्ती कर लें जैसा की इंदु और समर ने की। इसके उलट वास्तविकता ये है की आतंकवाद तभी खत्म होगा जब पाकिस्तान उसे पालना बंद करेगा।
सच्चाई यह है की पाकिस्तान ही आतंकवाद को बढ़ावा देता है और यहां तक की आतंकियों की ट्रेनिंग भी वहाँ की सेना ही करवाती है।
क्या हम ओसामा बिन लादेन को भूल जाएं? क्या वो पाकिस्तान में नहीं था जब यूएस की फोर्स ने उसे मार गिराया?
2. पाकिस्तानी मर्द हिंदू महिलाओं का ज़्यादा खयाल रखते हैं और भारतीयों के मुकाबले पाकिस्तानी ही आतंकवाद से लड़ सकता है।
समर और इंदु की पहली डेट इंदु के घर पर होती है। और जब इंदु समर के करीब आने की कोशिश करती है वो कहता है “तुम्हारा पहली बार किसी खास इंसान के साथ होना चाहिए”। इंदु सोच में पड़ जाती है के इसके विपरीत उसके मोहल्ले के लड़के हर वक्त उसे ताड़ते रहते हैं। इस बात पर ही इंदु समर पर फिदा हो जाती है।
थोड़ी देर बार वही समर इंदु को आतंकवादी से बचाता नज़र आता है वो भी अकेले। समर न पुलिस को बुलाता है और न ही किसी पड़ोसी को। फिल्म में दिखाया जाता है की कैसे पड़ोसी जगराते में व्यस्त हैं और एक अकेला पाकिस्तानी युवक इंदु की जान बचाता है।
3. भारत उन राज्यों का संघ है जो उससे अलग होना चाहते हैं
फिल्म के एक सीन में इंदु और समर काफ़ी गुस्से में एक दूसरे के देश की कमियां गिनाते नज़र आते हैं। पर इस लड़ाई में समर साफ तौर पर जीतता नज़र आता है। इंदु कहती है पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ है जिसके जवाब में समर कहता है की “भारत केवल 25 राज्यों का एक संघ है जो एक दूसरे से ही सहमत नहीं है”।
आश्चर्य की बात है की इस कहानी को देख कर कौनसा देश प्रेमी खुश हो सकता है? क्या ये कहानी बॉर्डर पार के लोगों को खुश करने के लिए लिखी गई है?
सिंध और बलूचिस्तान पाकिस्तान से आज़ादी चाहते हैं, पर फिल्म में इसपर एक वाक्य भी नहीं कहा गया। किया गया तो केवल पाकिस्तान का महिमा मंडन। आखिर है कोन इस फिल्म की टारगेट ऑडियंस?
4. हिंदू औरतें किसी भी आदमी के साथ सोने के लिए हमेशा तयार रहती हैं और केवल पाकिस्तानी पुरुष ही उनकी आकांशकों को पूरा कर सकता है। हिंदू पुरुषों से सदैव असंतुष्ट ही रहती हैं।
ये फिल्म उसी प्रोपेगंडा को आगे बढ़ाता है जिसे पाकिस्तानी सिनेमा सालों से बढ़ा रहा है। इसके अनुसार एक पाकिस्तानी पुरुष में एक हिंदू महिला को खुश करने की ज्यादा क्षमता होती है। ये फिल्म इस प्रोपेगेंडा को एक और कदम आगे बढ़ाती है जब समर इंदु से कहता है “तुम्हारा पहली बार किसी खास इंसान के साथ ही होना चाहिए”। इसका मतलब है भारतीय पुरुष केवल औरतों के साथ सोना ही जानता है, उनकी इज़्ज़त तो एक पाकिस्तानी पुरुष ही कर सकता है।
आखिर क्यों लेखक इस फेक प्रोपेगंडा को बढ़ावा देने का काम कर रहा है?
क्या हम हर दिन सामने आ रही रेप, धर्मांतरण और नाबालिग बच्चियों की तस्करी को अनदेखा कर दें? हर दिन पाकिस्तान में हिंदू लड़कियों को अगवा किया जाता है, उनका धर्म बदला जाता है, क्या ये सब पाकिस्तानी पुरुष नहीं कर रहे? फिर क्यों लेखक उन्हे दूध का धुला दिखाने की होड़ में लगे हुए हैं?
5. हिंदू महिला के लिए एक पाकिस्तानी अजनबी से डेटिंग करना बेहतर है, बजाय इसके की वो एक जान पहचान वाले हिंदू पुरुष से मेल बढ़ाए, क्योंकि वे सब कामुक और लंपट हैं।
जैसा की पहले बताया गाया है इस फिल्म में बार बार हिंदू युवकों को निशाना बनाया जाता है और उन्हें बुरा दिखाया जाता है। एक तिलकधारी जागरण में जाने वाले हिंदू से ज्यादा इंदु के पाकिस्तानी युवक के साथ सुरक्षित है। जबकि उसके पड़ोसी उसे बेटा और दीदी कहते हुए भी गलत नजरों से ही देखते हैं।
हिंदू महिलाओं का चित्रण बहुत ही विचित्र रूप में किया गया है, एक तरफ बुजुर्ग महिलाएं अपने हठी बच्चों और हर महिला के सामने फिसलते पतियों से परेशान हैं। वहीं दूसरी ओर जवान महिलाएं जैसे की इंदु, अलका और सोनल कामोत्तेजित हैं।
हिंदू समाज का क्या चित्रण है!
इस क्लिप को भी देखिए।
6. हिंदू धार्मिक आयोजन केवल एक बहाना है, आदमियों का आस पड़ोस की युवतियों पर नज़र जमाने का
एक सीन में दिखाया गया है की जगराते के दौरान भी आदमी केवल इंदु के बारे में सोच रहे हैं। ये भी गौर करें की जगराते में कैसे शिव भगवान की मूर्ति धूम्रपान करते हुए नज़र आती है।
लेखक अबीर सेनगुप्ता ने न केवल एक कामुक महिला को भारत नाम से संबोधित किया बल्कि हर उस देश भक्त की भावनाओं को आहत किया है जो इस देश को अपनी मां समझते हैं।
आज हर परिवार अपनी बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है पर इस फिल्म के अनुसार एक लड़की को सड़क पर चलने वाले किसी भी लड़के पर भरोसा कर लेना चाहिए। इतना ही नहीं उसे उस लड़के की हर ख्वाहिश को पूरा करना चाहिए वरना वो अपनी दोस्तों के बीच मज़ाक बनकर रह जाएगी।
फिल्म में दिखाई गई महिलाओं के ब्वॉयफ्रेंड उनकी इजाज़त के मोहताज नहीं हैं। बल्कि एक महिला की इक्षा का ऐसा अनादर एक उपहास का विषय बन कर रह गया है।
हालांकि और इस इंडस्ट्री से क्या उम्मीद करें जिसने दर्शकों को आकर्षित करने के लिए छेड़ छाड़ और बलात्कार के दृश्यों को पर्दे पर दिखाया है।
फिल्म देखते हुए हम ये नहीं भूले के कैसे इंदिरा गुप्ता जो की एक शाकाहारी बनिया परिवार से हैं पर उन्हें मांसाहार से ज्यादा प्रिय कुछ भी नहीं। किसे क्या खाना है क्या नहीं ये उनकी अपनी राय है, पर एक के बाद एक बॉलीवुड फिल्मों में यही दिखाया जा रहा है ताकि आने वाली पीढ़ी शाकाहारी और सात्विक जीवन से और दूर जाता जाए।
Criticism & Review as per Section 52 of Indian Copyright Act, 1957
We Need Your Support
Your Aahuti is what sustains this Yajna. With your Aahuti, the Yajna grows. Without your Aahuti, the Yajna extinguishes. We are a small team that is totally dependent on you. To support, consider making a voluntary subscription.
UPI ID - gemsofbollywood@upi / gemsofbollywood@icici